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Govardhan Puja 2025: क्यों की जाती है गोवेर्धन पूजा? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्व के साथ अन्नकूट तक की सारी अनोखी परम्पराएं!

Govardhan Puja 2025: गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो दीपावली के ठीक एक दिन बाद मनाया जाता है। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है। यह त्योहार भगवान कृष्ण की बाल लीला का स्मरण करता है, जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर गोकुल वासियों को इंद्र देव के प्रकोप से बचाया था। 2025 में यह पर्व 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह न केवल कृष्ण भक्ति का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक एकता का संदेश भी देता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट या अन्नकुट के नाम से भी जाना जाता है, जहां ‘अन्नकूट’ का अर्थ है ‘अन्न का पहाड़’।

गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गङ्गा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। ऐसे गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

इस दिन भक्त विभिन्न प्रकार के शाकाहारी व्यंजनों का विशाल भोग लगाते हैं, जो भगवान को समर्पित होता है। ब्रज क्षेत्र में लाखों भक्त गोवर्धन पर्वत की 21 किलोमीटर परिक्रमा करते हैं, जबकि घरों में गोबर से छोटा टीला बनाकर पूजा की जाती है।

Govardhan Puja 2025: गोवेर्धन पूजा शुभ मुहूर्त

गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी। पूजा के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
प्रातःकाल पूजा का मुहूर्त: समय: सुबह 06:26 बजे से 08:42 बजे तक
अवधि: 2 घंटे 16 मिनट।
सायंकाल पूजा का मुहूर्त: समय: दोपहर 03:29 बजे से 05:44 बजे तक।
अवधि: 2 घंटे 16 मिनट।
प्रतिपदा तिथि का समय: प्रारम्भ: 21 अक्टूबर 2025 को शाम 05:54 बजे।
समापन: 22 अक्टूबर 2025 को रात 08:16 बजे।

Govardhan Puja 2025: क्यों मनाई जाती है गोवर्धन पूजा? कथा और महत्व

गोवर्धन पूजा की कथा भागवत पुराण से ली गई है। ब्रजभूमि (मथुरा-वृंदावन क्षेत्र) के गोकुलवासी हर वर्ष वर्षा ऋतु में इंद्र देव की पूजा करते थे, ताकि अच्छी फसल हो। एक बार बाल कृष्ण ने कहा कि हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यह पर्वत हमें हरा चारा, फल-फूल और जीवन प्रदान करता है। गोकुलवासी कृष्ण के कहने पर इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन की आराधना करने लगे। क्रोधित होकर इंद्र ने भारी वर्षा शुरू कर दी, जिससे बाढ़ आ गई। तब आठ वर्षीय कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और सात दिनों तक सबको उसके नीचे आश्रय दिया। सातवें दिन इंद्र शांत हो गया। इंद्र का अहंकार टूट गया और उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर ली। तब से गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हुई।

इसके बाद गोकुलवासियों ने कृष्ण को धन्यवाद देने के लिए सात दिनों के आठ भोजन (नाश्ता, दोपहर, रात के तीन-तीन भोजन और स्नान के बाद का भोग) यानी कुल 56 व्यंजनों का भोग लगाया। इस पर्व को ‘अन्नकूट’ के नाम से भी जाना जाता है और यह दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है।

Govardhan Puja 2025: 56 भोग क्यों लगाया जाता है? सूची और महत्व

56 भोग (चप्पन भोग) कृष्ण को लगाने की परंपरा उसी सात दिनों की कथा से जुड़ी है। प्रत्येक भोग शुद्ध शाकाहारी होता है, जो प्रकृति के विभिन्न उपहारों (अनाज, दालें, फल, सब्जियां, मिठाइयां) का प्रतिनिधित्व करता है। सभी व्यंजन शुद्ध सात्विक होते हैं, बिना लहसुन-प्याज के। 56 भोग सात दिनों की रक्षा का धन्यवाद है और अन्नकूट का प्रतीक है, जो किसान की मेहनत को सम्मान देता है। यह भोग कृष्ण की उदारता और जीवन की विविधता का प्रतीक है। मंदिरों में 56 व्यंजन बनाए जाते हैं, लेकिन घरों में भक्त अपनी क्षमता अनुसार 10-20 व्यंजन भी लगा सकते हैं। भोग को गोवर्धन पर्वत के प्रतीक (गोबर या मिट्टी से बने टीले) के चारों ओर गोलाकार व्यवस्थित किया जाता है।

56 भोग को श्रेणियों में बांटा जाता है। अनाज श्रेणी में चावल, बाजरे का भात, पूरी, खिचड़ी, हलवा, लड्डू, सेवई आदि शामिल हैं। दाल-सब्जी में मूंग दाल, चना दाल, आलू-गोभी, पनीर मटर, लौकी, कद्दू आदि बनते हैं। दूध उत्पादों में खीर, रबड़ी, मक्खन, दही, पेड़ा, रसगुल्ला आते हैं। मिठाइयों में जलेबी, मालपुआ, बर्फी, गुजिया, काजू कतली प्रमुख हैं। फलों में केला, सेब, अनार, संतरा, नारियल आदि चढ़ाए जाते हैं। ब्रज में बाजरे का भात, कढ़ी और गुड़ की रोटी अनिवार्य माने जाते हैं। भोग को गोवर्धन टीले के चारों ओर गोलाकार सजाया जाता है।

महत्व: 56 भोग केवल भोजन नहीं, बल्कि कृतज्ञता का भाव है। यह सिखाता है कि भगवान को प्रेम और समर्पण से अर्पित किया जाए। प्रसाद वितरण से सामाजिक सद्भाव बढ़ता है। आध्यात्मिक रूप से, यह कृष्ण की ‘रक्षा’ भावना को मजबूत करता है।

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