नक्सलियों से बातचीत के लिए दो शर्तें.. गृहमंत्री विजय शर्मा ने किया स्पष्ट, आप भी जानें क्या है शांतिवार्ता के कंडीशन..
Govt-Naxalites Peace Talk: रायपुर: छत्तीसगढ़ समेत देशभर में नक्सल विरोधी अभियान तेज कर दिए गए है। केंद्र की सरकार अगले साल के मार्च महीने तक देशभर के माओवाद प्रभावित राज्यों से नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि राज्यों के साथ समन्वय स्थापित करते हुए माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाया जा रहा है। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है। पिछले दो सालों में माओवादी संगठनों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में उनके शीर्ष नेता और प्रतिबंधित माओवादी पार्टी के महासचिव केशवराव उर्फ़ बसवा राजू को भी एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया था। सूत्रों की माने तो लगातार चलाये जा रहे इस ऑपरेशन के बाद कभी नक्सलियों के केंद्रीय कमेटियों के सदस्यों की संख्या 40 सिमटकर मात्र 9-10 ही रह गई है। लाल लड़ाकों का थिंक टैंक पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके है।http://www.cgglobal.news
प्रेसनोट में की है शांतिवार्ता की अपील
बहरहाल पिछले दिनों देखा गया है कि, नक्सल संगठनों की तरफ से तीन अलग अलग पत्र सामने आये थे। इनमें से दो पत्रों में माओवादियों ने सरकार के सामने शांतिवार्ता का प्रस्ताव भी रखा था। यह कथित पत्र नक्सलियों के सीसी मेंबर अभी के नाम से जारी किया गया था। नक्सल संगठन की तरफ से यह चौंकाने वाला दावा भी किया गया था कि, वह अब अपन सशस्त्र मूवमेंट को रोकना चाहते है। नक्सलियों ने शांतिवार्ता के लिए देशभर के जेलों में बंद नक्सल लीडरों से बातचीत के लिए वक़्त माँगा था। हालाँकि अब राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने साफ़ कर दिया है कि, बातचीत के लिए माओवादी संगठन को दो प्रमुख शर्ते पूरी करनी होगी।
हथियार-हिंसा त्यागने पर ही बातचीत
Govt-Naxalites Peace Talk: उप मुख्यमंत्री सह गृहमंत्री विजय शर्मा ने साफ किया है कि, सरकार की तरफ से शांतिवार्ता के दरवाजे खुले रहेंगे लेकिन इसके लिए नक्सलियों को पहले ग्रामीणों पर हमले बंद करने होंगे, उनकी हत्याएं बंद करनी होगी। दूसरा नक्सलियों ने जंगलों में सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के लिए जो आईईडी प्लांट किये है, उन्हें निकालना होगा। इस तरह गृहमंत्री ने दोहराया है कि, हिंसा और बातचीत एकसाथ सम्भव नहीं है। माओवादियों को हिंसा और हथियार पूरी तरह त्यागना होगा जिसके बाद ही बातचीत सम्भव हो सकेगा।
गौरतलब है कि, एक तरह सरकार जहां नक्सलियों के खिलाफ सशस्त्र ऑपरेशन चला रही है तो दूसरी तरफ माओवादियों से आत्मसमर्पण करते हुए सरकार के पुनर्वास नीति का लाभ लेने की अपील भी की जा रही है। इसके परिणाम भी सुखद है। पिछले दो सालो में ‘लोन वर्राटू सरीखे जैसे अभियान के तहत बड़े पैमाने पर अलग-अलग स्तर के माओवादियों ने छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में आत्मसमर्पण किया है। इसके अलावा खोजी अभियान में उनकी गिरफ्तारियां भी हो रही है।
माओवादी संगठन का ढांचा ध्वस्त
सरकार की तरफ से तेजी से चलाये जा रहे उन्मूलन अभियान के बाद माओवादी संगठन अब पूरी तरह से बैकफुट पर जा चुके है। बात अगर देश के सबसे ज्यादा नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र बस्तर की करें तो कभी संगठित होकर पुलिस और ग्रामीणों पर बड़े हमले करने वाले नक्सली आज एनकाउंटर के डर से छोटे-छोटे गुट में बंट चुके है। नक्सल संगठनों में नई भर्तियां नहीं हो रही है। उनके आय के स्त्रोत पूरी तरह से बंद हो चुके है। वे सरकार और पुलिस के खिलाफ वे लड़ाई की स्थिति में नहीं है। पुलिस का दावा है कि, माओ संगठन को अब ग्रामीणों की तरफ से किसी तरह का सहयोग नहीं मिल रहा है जिससे उनका मनोबल पूरी तरह से टूट चुका है। छोटे कैडर के नक्सलियों से मिल रही जानकारी बड़े नेताओं के लिए घातक साबित हो रहे है। उनकी निशानदेही और सूचनाओं पर पुलिस सटीक और सफल ऑपरेशन कर रही है। हालांकि सरकार अब भी नक्सल संगठन से वार्ता के लिए तैयार है। इसके लिए उन्हें पहले हथियार छोड़ने की अपील की गई है, दूसरी तरफ माओवादी संगठन का कहना है कि, बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी सरकारों की है। वे बस्तर क्षेत्र से सुरक्षाबलों की वापसी करें, उनके कैम्प को बंद करें, तब वह सरकार से वार्ता करेंगे।http://www.cgglobal.news